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किसी भी प्रकार के कागजी कार्य को संपादित करने के तरीके को जानना – समझना और हमारे मस्तिष्क में जो भी विचार आते हैं उसे किसी भी प्रकार के कसौटी पर परखे बिना साझा करना ही हमारा मुख्य उद्देश्य है !

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किसी भी प्रकार के कागजी कार्य को संपादित करने के तरीके को जानना – समझना और हमारे मस्तिष्क में जो भी विचार आते हैं उसे किसी भी प्रकार के कसौटी पर परखे बिना साझा करना ही हमारा मुख्य उद्देश्य है !

क्या सिर्फ कर्ता ही दोषी है किसी कार्य के न होने या करने में ?

Sudhakar Choudhary, January 16, 2025March 24, 2025

एक पार्टी है जो विपक्ष में है, इस लेख में उनको हम A से संबोधित करेंगें, और इस पार्टी A की एक पुरानी साथी है जो अभी सत्ता में है, इसे हम B से संबोधित करेंगें । नामांकरण के बाद स्वभाव पर आते हैं: तो स्वभाव से दोनों पति – पत्नी हैं । कभी एक साथ रहते हैं तो कभी सौतन के पास चले जाते हैं । ‘हम दिल दे चुके सनम’ का वो गीत तो सुना ही होगा, दिवंगत केके की आवाज में: ….. कभी है मिलन कभी फुरकत ….. ! वैसे भी, मन अच्छा हो तो पत्नी ससुराल में रहती है और खट्टा होने लगे तो मायका जाने की जिद करने लगती है । अब इस दोनों में कौन पति है और कौन पत्नी ! ये मैं आपकी पसंद पर छोड़ता हूँ ।

एक तीसरी पार्टी भी है जो अभी B के साथ सत्ता में है, इसे हम C से संबोधित करेंगें, इस लेख में । इसका स्वभाव नहीं बता पाएगें, क्यूंकी है नहीं, निर्गुण हैं । यहाँ C का मतलब कुछ और न निकाला जाए, यह english वर्णमाला का बस एक अक्षर है जो तीसरे नंबर पे आता है । संयोग से हमारे क्रम में भी इनका स्थान तीसरा है, पार्टी है ही तीन नंबर की । खैर, जैसे – तैसे दोनों पार्टियां गठबंधन करके सरकार चला रही है पर स्थिति जगजाहिर है और यह कहने की जरूरत नहीं है कि संबंध अच्छे नहीं हैं । पहले की तरह ही खींच – तान चल रही है । आखिर मजबूरी की दोस्ती कितने दिन की ? मैं तो कहता हूँ दिन छोड़िए, पहर – दो – पहर की ।  

वस्तुस्थिति यह है कि: होड़ लगी है credit लेने की, पार्टी B और पार्टी C में । कुछ रोजगार देने की बात चल रही है जब से यह गठबंधन की सरकार बनी है । कुछ मतलब : 10 लाख ! अब 10 लाख के लिए मैं ‘कुछ’ का प्रयोग कर रहा हूँ क्यूंकी देना तो है नहीं इन्हें । हो सकता है कि कुछ रोजगार दे भी दें, अगर अपना वेतन भत्ता बढ़ाने के बाद भी राज्यकोष में कुछ बच जाए तब । बस इसी बात का डर है पार्टी A को । डर इसलिए कि, कहीं, अगर, गलती से भी, यह सरकार रोजगार दे देती है तब आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उनकी, मतलब पार्टी A की, हालत खराब हो जाएगी (यहाँ ‘हालत खराब’ के उच्चारण से पहले अपने शब्दों को थोड़ा सा रोकिए लेकिन चेहरे के भाव को मत रोकिएगा, बिलकुल वैसे ही जैसे पिकू में इरफान खान ने किया था) । आसान शब्दों में कहें तो पार्टी A के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं रह जाएगा पार्टी B और C को नीचा दिखाने का । हालांकि इन लोगों को, मतलब नेता लोगों को, एक – दूसरे को नीचा दिखाने के लिए मुद्दे की जरूरत है भी नहीं ।

अब मुख्य घटना पर आते हैं । इसी रोजगार के गुच्छे में एक सिरा शिक्षक बहाली का भी है । जिस दिन शिक्षक बहाली से संबन्धित अंतिम से दूसरी सीढ़ी पार होने वाली थी (मतलब की बस एक कदम और बच जाता या जिसे हम english में second last कहते हैं) ठीक उसी दिन पार्टी A ने अपने कुछ पालतू कुत्तों के साथ पार्टी C पर धावा बोल दिया । अब कुत्ते तो कुत्ते हैं, उन्हें क्या पता कि – जब कोई बुरा भी कुछ अच्छा करने की कोशिश करे तब उसे रोकना नहीं चाहिए, करने देना चाहिए । कुत्ते को तो वही करना होता है जो उसका मालिक उसे करने को कहता है । अगर मालिक बदल जाए तो फिर नए मालिक के आदेश का पालन करना होता है और इसमें कोई अचरज वाली बात भी नहीं है आखिर ये तो कुत्ते का मूल स्वभाव है । आज जिसपे भौंकते हैं कल उसके पीछे दुम हिलाते हैं, बस रोटी ही तो रखनी है हाथ में । यहाँ यह बात ध्यान देने वाली है कि पार्टी A के द्वारा किए गए इस कृत्य के बारे में पार्टी B के मुखिया ने कुछ नहीं बोला, बिलकुल चुप थे, चुप हैं । बस इतना बोला कि – “अब हम क्या बोलें ? आप सबको तो सब पता ही है” । अभी 10 दिन पहले तक गुच्छे में अनाप – सनाप बोल रहे थे मुखिया जी, पार्टी A के विरोध में । जब से अलग हुये हैं तभी से बजा रहे थे, फिर एकाएक से यह मौन ! जनता मूर्ख नहीं होती है मुखिया जी, भावुक होती है । इतना तो हमलोगों को भी अंदाजा हो गया है कि : पहले के साथी हैं आपके, फिर से कोई झुनझुना देने का वादा कर दिये होंगें । लोभी भी तो बहुत है न आप । कुर्सी के लिए तो आप अपना D और I (यहाँ D और I का मतलब हम नहीं लिख सकते ! पर आप समझ जायें ऐसी मेरी इच्छा और कामना दोनों है) भी बेच दीजिएगा, पार्टी C से पल्ला झाड़ना कौन सी बड़ी बात है ।

इस धावे का असर यह हुआ कि पार्टी C अपना D बचाने में व्यस्त हो गयी और शिक्षक बहाली के L लग गए । अब अगर किसी का D संकट में हो तो वो दूसरे की भलाई या अपने ही वैसे कर्तव्य जिसमें दूसरों का भला होने वाला हो उसपे ध्यान कहाँ दे पाता है । सामान्य स्वभाव है, अपने पर ले कर देखिये, पूरी तरह समझ में आ जाएगा । अब इस पार्टी का D क्यूँ आफत में पड़ा हुआ है ! इसके पीछे इतिहास है, पिछले 30 – 32 साल का, उनके पिताश्री का किया हुआ कुछ कुकर्म है जिस पर अभी हम चर्चा नहीं करेंगें, मुद्दे से भटकने का डर है । डर क्या ! भटक ही जायेंगे, पता है ।

इधर पार्टी B के मुखिया जी बिलकुल चुप हैं और बहाली को टाल रहे हैं क्यूंकी नदी के उस पार से पार्टी A हाथ में वही झुनझुना लेकर हिला रही है और कुछ बुदबुदा रही है जैसे कह रही हो: अभी नहीं करना, अगली बार फिर से साथ में आएंगें, तब करेंगें । साथ मे मिलकर करेंगें और लोगों की जय – जयकार को बराबर बाँट लेंगें । लेकिन हमारे मुखिया जी क्या इतने बेबकूफ हैं ? बिलकुल नहीं । ये तो इतने पहुंचे हुये हैं कि पार्टी B से उसी को बाहर का रास्ता दिखा दिया था जिसने पार्टी बनाई थी । असलियत में मुखिया जी देख रहे हैं, मौका ! ऐसा मौका जो किसी भी परिस्थिति में इनको ही फायदा दे, दूसरे को नहीं और ऐसा मौका ढूँढने में ये माहिर हैं । माहिर मतलब आप मुखिया जी के इस गुण की कसम खा सकते हैं । यदि सच में पार्टी A और पार्टी B यानि कि हमारे मुखिया जी के बीच कोई समझौता हो गया है तब तो ये बहाली चुनाव से पहले नहीं होने वाली है । सबसे अधिक बहाली शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में होने वाली है और यह दोनों विभाग पार्टी C के अंदर है, मुखिया जी गेंद को पार्टी C के पाले में डालकर पार्टी A के साथ गलबहियाँ कर लेंगें और जनता से बोलेंगें : – “हम सब तो एक ही, आप सबको तो सब पता ही है” । लेकिन अगर समझौता अभी पक्का नहीं हुआ है तब संभव है कि चुनाव के ठीक पहले मुखिया जी बहाली का बिगुल फूँक दें । आखिर सबकुछ तो उनके हाथ में ही है और ऐसा एक बाएँ हाथ के नेता बोल भी चुके हैं कि : “अब सब कुछ मुख्यमंत्री के हाथ में है” । बाएँ हाथ का नेता मतलब कि वामपंथी नेता । थोड़ा सा इनके बारे में भी बता दें ।

इस खेल में एक और पार्टी है जिसका हम कोई नामांकरण नहीं करेंगें बस स्वभाव बता देते हैं कि इनकी सोच वामपंथी है, ऐसा ये लोग बोलते हैं । असलियत में इनकी सोच अपभ्रंशित वामपंथ की है । ये पार्टी अभी सरकार को अपना समर्थन दे रही है, बाहर से, हमेशा बाहर से ही देती है । इस ‘बाहर’ का मतलब है – गठबंधन की तरफ पीठ करके समर्थन देना । मतलब हम तुम्हारे साथ भी हैं और विरोध में भी है । मतलब इनको दोनों हाथों मे लड्डू चाहिए । एक लड्डू सत्ता का और दूसरा लड्डू जनता के समर्थन का । ये सरकार के सामने जनता की मांग को रखते हैं और लौट कर जनता से कहते हैं कि :- “आपलोग तो  देख ही रहे हैं कि हम आपलोगों की मांग को सरकार के पास रख रहे हैं पर सरकार मान नहीं रही है” ।  अगर सरकार इनकी बात नहीं मान रही है तो ये इनकी बेइज्जती है या इनकी धूर्तता ये तो वही जाने हम तो इनकी धूर्तता ही समझेगें क्यूंकी अगर नहीं मान रही आपकी बात तो समर्थन क्यूँ दे रहे हो आप ? अजीब स्थिति है भाई साहब ! मतलब कुछ भी ! कभी – कभी मुझे लगता है कि किसी भी गठबंधन में इनकी वही भूमिका होती है जो इंसान के शरीर मे बाएँ हाथ का होता है । अब बाएँ हाथ का क्या उपयोग करते हैं हमलोग ये कहने की जरूरत नहीं हैं ।

इस कहानी को कहने का मतलब यह है कि हमारी भोली – भली जनता समझती है कि अगर कोई सरकारी काम नहीं हो रहा है तो इसकी जिम्मेदार सत्तारूढ़ पार्टी है जबकि हक़ीक़त में संभव है कि ऐसा न हो । यह भी हो सकता है कि – विपक्ष ही केंद्राधीक्षक की भूमिका में हो ।

चलिये, फिर मुलाक़ात होगी !

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