कुछ बातों का अगर ध्यान रखा जाए तो बड़ी आसानी हो सकती है जीवन जीने में । मैं पहले ही साफ कर दूँ कि मैं अपने आपको कोई बहुत बड़ा ज्ञानी नहीं मानता हूँ और न ही वैसा इंसान जो बिना वजह के या बिना मांगे ज्ञान बांटता फिरता हो । दरअसल बात यह है कि कुछ लोग जिंदगी को गुजारते और कुछ उसे जीते हैं। जो जीते हैं जिंदगी को उनमें से कुछ, अपने यादों और अनुभवों पर मंथन करते हैं। मैं उन्हीं में से हूँ, थोड़ा – बहुत सोचता रहता हूँ अपने बीते हुये समय या जिंदगी के बारे में । इसलिए उसमें से कुछ न कुछ छनकर निकलता रहता है ।
ऐसे लोग जो थोड़ा – बहुत सोचते रहते हैं उन्हें थोड़ा सतर्क रहने की भी जरूरत है, भावुक होने का खतरा रहता है, अतीत को जीने लगते हैं लोग, सोचने के क्रम में । अतीत को जीना नहीं है, बस उसका मंथन करना है, यादों के बगल में बैठ कर, वैसे ही जैसे बच्चों के झुंड को थोड़ी दूर से खेलते हुये देखना । ये ध्यान रखना है कि मैं और मेरी यादें दोनों अलग चीज हैं । अलग इसलिए कि मेरा अस्तित्व अभी भी बरकरार है जबकि मेरी यादें अब अस्तित्व मे नहीं हैं, वो बीत चुकी है । उसे फिर से अपने में समाहित नहीं करना है, उसे अपने से थोड़ा दूर रखकर देखना है ।
देखना यह है कि परिणाम जो आया उसका कारण क्या था, मैंने क्या किया था जो वह परिणाम आया । अगर दूसरा तरीका अपनाया होता तो क्या होता ? बस इसी अगर – मगर की गुत्थी को सुलझाना अनुभवों का मंथन है । इतने दिनों मे मैंने जो अनुभव किया है उनमें से कुछ बातें इस प्रकार हैं –
- सबसे पहली और महतव्पूर्ण बात: कम बोलें, अर्थपूर्ण बोलें । अब यहाँ ये सवाल उठना लाज़मी है कि: कितना कम ? तो इसका जबाब सीधा है: बिना आग्रह के बोलने से बचें और जब बोलें तो कोशिश करें कि कम शब्दों मे अपनी बात को रखा जाए ।
मेरा मानना है कि जो ज्यादा बोलते हैं वो या तो एक ही बात को बार – बार बोलते हैं या फिर झूठ बोलते हैं । और ये सिर्फ मेरा मानना नहीं है, मैंने कई लोगों पर इस सिद्धांत को साबित भी करके देखा है। अपनी बात को समझाने के लिए लोग ज्यादा से ज्यादा उदाहरण पेश करते हैं । अगर विपक्ष समझदार हो तो वो आपको आपके ही उदाहरण से फंसा देगा, इसलिए सतर्क रहने की जरूरत है । इसका एक दूसरा पक्ष भी है: लोग खीझ जाते हैं ऐसे लोगों से जो ज्यादा बोलते हैं, आखिर सबको बोलने का शौक होता है क्यूंकि सबको महत्वपूर्ण दिखना है । दूसरे को सुनने की कोशिश कीजये, इसमें आपका ही फायदा है, आपके ज्ञान मे बढ़ोतरी होगी । बहुत सी ऐसी बातें है जो आपने नहीं सोची होगी लेकिन किसी दूसरे ने सोच रखी हो, क्यूंकी उस आदमी ने अपने जीवन मे उस घटना का अनुभव कर लिया है जिसका अनुभव करने का अभी तक आपको मौका नहीं मिला है ।
- कोई किसी के समझाने से नहीं समझता । लोग अपने में सुधार तभी लाते हैं जब उनके अंदर यह विचार आता है कि अमुख काम करने का तरीका गलत था । अगर किसी के समझाने से ही लोग समझदार हो जाते तो दुनियाँ में या कम से कम भारत में तो अधिकांश लोग विवेकानंद या ओशो या शंकराचार्ज जैसे होते । हैं क्या ? नहीं हैं न !
आप बस यह करें कि: अगर किसी इंसान की कोई बात या उसके किसी काम को करने के तरीके में अगर आपको कोई खामी नजर आती है तो उसे 2-3 बार समझाएँ, फिर छोड़ दे उस आदमी के विवेक पर । अगर आपकी बात में दम होगा तो वो आपकी बात मानेगा, पर तब मानेगा जब उसका मन कहेगा । उसका मन कहेगा तब ? इस बात का क्या मतलब है ? इस बात को समझिए – इंसान की मूल प्रावृतियों में से एक प्रवृति है विरोध का । जब आप किसी को कुछ समझाते हैं तब जो पहला भाव उस आदमी के मन में आता है वह है विरोध । उस समय हो सकता है कि वो आपकी बात न माने । अगर उसके पास उपयुक्त शब्द या जबाब होंगे तो वह अपना विरोध प्रकट भी कर सकता है पर अगर उसके पास शब्दों या विचारों की कमी है तो उस समय वह आपकी बातों में बस हाँ में हाँ मिलायेगा । मानेगा तब, जब आपकी बात का प्रभाव खत्म हो जाएगा या यों कहें कि उस आदमी का विरोध वाला भाव खत्म हो जाएगा । अगर आप उसे बार-बार समझाने की कोशिश करेंगें तो उसका विरोध पुनर्जीवित होता रहता है और एक समय के बाद वह आपसे या आपकी बातों से उदासीन या निष्क्रिय होने लगता है और फिर वो कभी भी आपकी बात को समझ नहीं पाता । ऐसी स्थिति में वह आपकी बात को बस सुनता है, उस पर मंथन नहीं करता । सुन इसलिए लेता है कि वह शायद आपकी इज्जत करता हो । हाँ, कुछ लोग होते हैं जिनमें अपनी गलती स्वीकार करने की क्षमता होती है, ये विरोधात्मक नहीं स्वीकारात्मक प्रवृति के होते हैं पर इनकी संख्या बहुत कम है, बहुत कम ।
- ज्यादा सिधान्त देने से हमेशा बचना चाहिए । सिधान्त की संख्या अगर ज्यादा होगी तो वह एक दूसरे को प्रतिछेद करेंगी, मतलब एक दूसरे का विरोध करेंगी । ऐसी स्थिति में आपको अपने सिधान्त का वचाव करना मुश्किल हो जाता है ।
कुछ लोगों की आदत होती है, अपनी बोली गयी लगभग हर बात को एक सिधान्त का रूप देने की । वह ऐसा इसलिए करते हैं क्यूंकी उनके अंदर कुछ बातें घर की हुयी होती हैं जैसे: वह अपने आप को औरों से ज्यादा विचारवान मानते हैं या अपने आप को केंद्र में रखकर दुनियाँ को देखते हैं जिसे हम english में self-centered कहते हैं । ऐसे लोगों को अपने अनुभवों पर घमंड होता है और वह अपने अनुभवों की दुहाई देकर दूसरे से अपनी बात मनवाना चाहते हैं । ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि आपका अनुभव आपको खास लगता है क्यूंकी उसे आपने जिया है जबकि दूसरे आदमी के लिए वो उतना खास नहीं हो सकता । हो सकता है कि जो समस्या आपके लिए बड़ी है किसी और आदमी के लिए उतनी बड़ी न हो । बचपन में बहुत से बच्चों को गणित के सवाल बड़े कठिन लगते हैं पर वही सवाल किसी होनहार बच्चे को क्या तनिक भी परेशान कर पाते हैं ? सिधान्त ऐसा हो जो हर परिस्थिति में कारगर हो । ऐसा नहीं कि कहीं काम करे और कहीं विफल हो जाए । जितने कम सिधान्त होंगे उतना ही आसान होगा उसको सुरक्षित रखना मतलब कि उस पर टीके रहना । उतना ही सिधान्त दे जितना आप खुद अमल करते हैं या अनुशरण करते हैं या जीतने को आपने जिया है, न कि जितना आपने सुना है । कोई भी सिधान्त देने से पहले एक बार अपने मन से पूछ लें कि: क्या आप उस सिधान्त का पालन करते हैं, हमेशा ? बिलकुल ईमानदारी से पुछें । आपका मन कभी भी आपसे झूठ नहीं बोलेगा ।
- जब तक बहुत जरूरी न हो तब तक किसी दूसरे के लफड़े – झगड़े में अपनी राय न दें । यह नाहक ही दुश्मनी लेने जैसा है । आप उसी का साथ दें जो आपका साथ चाहता हो और जिसे आपके साथ की जरूरत भी हो । दोनों ही बातें जरूरी हैं । एक चीज जो इन दोनों बातों से भी ज्यादा जरूरी है वह यह कि: आप जिसका साथ दे रहे हैं या देने वाले हैं वह सही हो – कानूनी भी और मानवीय भी । मतलब कि उसके साथ अन्याय हुआ हो । अगर आप किसी ऐसे आदमी का साथ दे रहे हैं जिसने गलत किया है लेकिन आप उसके साथ इसलिए हैं क्यूंकी वह आपके पक्ष का आदमी है तो फिर आप बुरे फँसने वाले हैं, ये पक्की बात है ।
यह मानी हुयी बात है कि हर कोई आपके साथ जीवन भर नहीं रहने वाला । जो आज आपका मित्र है हो सकता है कि कल नहीं हो, कल कोई दूसरा आपका मित्र बनेगा । इस मामले मे बिलकुल श्पष्ट रहें, बिलकुल भी भावूक होने की जरूरत नहीं है । मेरा ऐसा कहना आपको मतलबी होने जैसा लग सकता है पर यही सत्य है, आप माने या न माने । हर रिश्ते की बुनियाद में मतलब है बस इस मतलब के रूप और परिमाण अलग-अलग होते हैं ।
चलिए, फिर मुलाकात होगी !